Working Capital क्या होता है ?
Working capital का हिंदी अर्थ है – कार्यशील पूंजी,
Working Capital किसी बिज़नस में लगने वाले पूंजी की उस जरूरत को बताता है, जो उस बिज़नस के दैनिक कार्य के लिए जरुरी होता है,
आम भाषा में अगर वर्किंग कैपिटल को समझा जाये तो दुसरे शब्दों ये भी कहा जा सकता है कि-
बिज़नस को सही तरह से बिना किसी रूकावट के लगातार चलाने के लिए जिस पूंजी की आवश्यकता होती है, उसे Working Capital (वर्किंग कैपिटल) कहा जाता है,
जैसे – दुकान या ऑफिस का किराया, लाइट बिल, स्टाफ या कर्मचारियों का वेतन, माल खरीदने के लिए लगने वाला खर्च, आदि,
वर्किंग कैपिटल निकालने का फार्मूला –
अगर टेक्निकली तथा एकाउंटिंग भाषा में बात की जाये तो –
Working Capital का अर्थ का मतलब है – कंपनी की CURRENT ASSET के कुल योग से CURRENT LIABILITIES को घटाने पर आने वाली संख्या को Working Capital कहा जाता है,
अगर इसे फोर्मुले के रूप में देखा जाये तो वर्किंग कैपिटल का फार्मूला होगा –
Working Capital = Current Assets – Current Liabilities
यहाँ पर CURRENT ASSET (करंट एसेट) से मलतब है – CASH, BANK BALANCE, ग्राहकों से प्राप्त होने वाली बकाया राशी, बिकने से बचे हुए माल का स्टॉक, और तैयार माल,
तथा , CURRENT LIABILITIES (करेंट लाईबिलितिज ) से मतलब है – SUPPLIER और अन्य लोगो को दी जाने वाली बकाया राशी, लोन, आदि,
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बिज़नस में वर्किंग कैपिटल का महत्व
जैसे हमने देखा, वर्किंग कैपिटल वह पूंजी होती है, जिस से कम्पनी अपनी दैनिक काम को पूरा करती है,और जिस के कारण बिज़नस बिना किसी खास समस्या के चलता रहता है, तो इस से बिल्कुल स्पस्ट हो जाता है कि , किसी भी बिज़नस में वर्किंग कैपिटल कितना महत्व रखता है,
इसके आलावा चाहे बिज़नस छोटा हो या बड़ा , WORKING CAPITAL का होना बहुत जरुरी है, एक अच्छा और अनुभवी बिजनेसमैन WORKING CAPITAL के महत्व को बहुत अच्छी तरह समझता है, और कोशिस करता है कि – उसे इस तरह की पूंजी की समस्या न हो जिस से कि उसे दैनिक कार्यो को समय से पूरा करने में दिक्कते आये,
वर्किंग कैपिटल की कमी से होने वाले नुक्सान
ध्यान दीजिए कि- जो बिजनेसमैन वर्किंग कैपिटल के महत्व को नहीं समझता, आज नहीं तो कल वह अपने ही बिज़नस में इस तरह से उलझ जाता है कि – उसके समय से अपने कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं होते और न ही अन्य जरुरी खर्चो को समय से पूरा कर पाता है जैसे – किराया , लाइट बिल आदि.
और इसका नतीजा ये होता है कि –जल्द ही वह बिज़नस किसी बड़ी मुसीबत में फस जाता है, कर्मचारी कंपनी छोड़ने लगते है क्योकि उनको समय से सैलरी नहीं मिलती और इसी तरह सप्लायर भी माल नहीं देते क्योकि उनको भी समय से पेमेंट नहीं मिलता है,
और कुछ दिनों बाद उस बिज़नस पर इतनी बढ़ जाती है, कि आम तौर व्यवसाय के मालिक को वह बिज़नस बंद करना पड़ता है.
वर्किंग कैपिटल की कमी को दूर करने के उपाय
वोर्किंग कैपिटल की जरूरतो को पूरा करना हर बिज़नसमैन के लिए एक बड़ी चुनौती होती है, और इस वर्किंग कैपिटल की कमी को पूरा करने के लिए कुछ निम्न तरह के उपाय किये जा सकते है –
- रिज़र्व फण्ड की व्यस्था – प्रॉफिट का कुछ हिस्सा इस रिज़र्व फण्ड में रखा जाना चाहिए ताकि बिज़नस में वर्किंग कैपिटल की कमी को दूर किया जा सके,
- CASH FLOW मैनेजमेंट – बिज़नस में पॉजिटिव और रेगुलर CASH FLOW का होना बहुत जरुरी है, इसके लिए उधार दिए गए माल के बदले समय से पैसे आना सुनिश्चित कर देना चाहिए,
- प्रॉपर फण्ड प्लानिंग – कंपनी को अपने दैनिक, साप्ताहिक या मासिक खर्चो का सही सही आकलन करके , उसके लिए पहले ही एडवांस में फण्ड पलानिंग की व्यस्था जरुर कर लेना चाहिए
आशा है,
इस पोस्ट से आप समझ पाए होंगे कि वर्किंग कैपिटल क्या होता है और साथ ही ये भी जान पाए वर्किंग कैपिटल का क्या महत्व है और इसकी कमी को दूर करने के लिए क्या क्या उपाय किये जा सकते है,
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