Types of Derivative in Hindi

डेरीवेटिव के प्रकार (TYPES OF DERIVATIVE)

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डेरीवेटिव के प्रकार  (TYPES OF DERIVATIVE)

डेरीवेटिव के प्रकार – डेरीवेटिव सिरीज के पिछले पोस्ट में मैंने आपसे बात की थी – डेरीवेटिव क्या होता है और इसका क्या importance है ?

और आइये आज के इस पोस्ट में जानते है -डेरीवेटिव के प्रकार के बारे में,

तो, डेरीवेटिव मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते है,

  • पहला – फॉरवर्ड (Forward Derivative Contract)
  • दूसरा – फ्यूचर (Future Derivative Contract)
  • तीसरा – आप्शन (Option Derivative Contract)

आइये इन तीनो डेरीवेटिव को थोड़ा डिटेल में समझते है,

सबसे पहले बात करते है फॉरवर्ड डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Forward Derivative Contract) के बारे में, 

 फॉरवर्ड डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Forward Derivative Contract)

अगर बात करे तो  फॉरवर्ड डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Forward Derivative Contract) के बारे में तो इसकी  अंग्रजी परिभाषा ये कहती है कि –

Forwards Are Customized Contract Made Today Between Buyer And Seller For The Transaction Which Will Happen In Future,

यानी –

फॉरवर्ड buyer और seller के बीच होने वाला एक व्यक्तिगत कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिस कॉन्ट्रैक्ट में असली TRANSACTION फ्यूचर में किसी दिन होने वाला होता है,

जैसे – अनाज उगाने वाला किसान अपने फसल को बेचने के लिए अगर किसी अनाज के व्यापारी से एक कॉन्ट्रैक्ट या अग्रीमेंट करता है कि किसान उस अनाज के व्यापारी को फ्यूचर में माल बेचेगा, जिसकी कीमत आज तय हो जाएगी, और उसी कीमत पर किसांन अपना वो माल उस व्यापारी को बेचेगा,

ये एक फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट का ही एक्साम्प्ल है,

इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट में किसान को फायदा ये होगा कि अगर वो कॉन्ट्रैक्ट कर लेता है, तो उसे कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार अपने अनाज को आज जो भाव तय होगा उस पर वो फ्यूचर में उस अनाज के व्यापारी को अनाज बेच कर , उस से पैसे ले पायेगा…भले ही मार्केट में भाव कितना भी कम क्यों न हो…

दूसरी तरफ..

अनाज के व्यापारी को फायदा ये होगा कि उसे अनाज एक फिक्स प्राइस पर मिल जायेगा…क्योकि वो ऐसा सोचता है कि फ्यूचर में अनाज का भाव कम हो सकता है …

इस तरह अक्सर जब दो लोग, buyer और seller जब किसी फ्यूचर के सौदे में विपरीति विचार रखते है ..तो वे इस तरह का फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट करके , लाभ कमा सकते है ..

और इसलिए लोग पुराने ज़माने में फोरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट किया करते थे…

 

फ्यूचर डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Future Derivative Contract)

सिम्पली फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट का next version है, जिसमे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में आने वाली प्रोब्लेम्स को सोल्व करने के लिए बनाया गया है, अगर इसके परिभाषा की बात करे तो फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट  भी Buyer और Seller के बीच होने वाला एक व्यक्तिगत नहीं बल्कि स्टैण्डर्ड  कॉन्ट्रैक्ट होता है, और इस कॉन्ट्रैक्ट में असली TRANSACTION फ्यूचर में किसी दिन होने वाला होता है,

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की खास बात ये है कि –

  • कॉन्ट्रैक्ट standardized हो, मतलब हर एक के लिए बराबर हो, पहले से तय एक जैसे नियम हो,
  • कॉन्ट्रैक्ट किसी मार्केट (स्टॉक एक्सचेंज) में लिस्टेड हो, जहा से कोई भी खरीद सके, बेच सके,
  • एक्सचेंज एक गारंटर के रूप हो ताकि कोई पार्टी डिफ़ॉल्ट ना करे,
  • कॉन्ट्रैक्ट का जो पूरा टाइम पीरियड है उसके अन्दर वो कॉन्ट्रैक्ट किसी और को ट्रान्सफर किया जा सता हो ,

अगर स्टॉक मार्केट के संबध में बात करे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का underlying asset किसी कंपनी का शेयर हो सकता है, इंडेक्स जैसे निफ्टी, बैंक निफ्टी या फिर commodity के केस में गोल्ड सिल्वर, मेटल, और करेंसी मार्केट के केस में USD और INR हो सकता है …

डेरीवेटिव के प्रकार सीरिज के आगे आने वाले पोस्ट में हम इस बारे में डिटेल में चर्चा करेंगे….

आप्शन डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट (Option Derivative Contract)

आप्शन डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट  भी बिल्कुल एक फ्यूचर डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसमे हमारे पास फ्यूचर में किसी डेट को कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार सौदा करने का अधिकार होता है, लेकिन ऑब्लिगेशन नहीं होता है …यानी ये जरुरी नहीं होता कि हमें वो सौदा करना ही करना है…

अगर हमें उस फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट से फायदा हो रहा है तो हम उस कॉन्ट्रैक्ट को एक्सीक्यूट या फिर सेटल करके लाभ कमा सकते है ..

लेकिन अगर उस कॉन्ट्रैक्ट में हमें कोई फायदा नहीं होने वाला, लोस होने वाला है तो फिर हम उस कॉन्ट्रैक्ट को नहीं करेंगे…….इस तरह का आप्शन यानि विकल्प देता है …आप्शन कॉन्ट्रैक्ट…

और इसीलिए इस कॉन्ट्रैक्ट का नाम है आप्शन कॉन्ट्रैक्ट ..

क्योकि …आप्शन कॉन्ट्रैक्ट एक तरह क फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट होता है , जिसमे हमें राईट तो होता है ..यानि हम अगर चाहे तो सौदे को एक्सीक्यूट कर सकते है, लेकिन अगर हम नहीं चाहे तो हमारे ऊपर कोई ऑब्लिगेशन नहीं है कि उस सौदे को सेटल या कम्पलीट करना ही करना है …

 

इस तरह आप्शन हमें चॉइस देता है – हम चाहे तो सौदा करे या चाहे तो सौदा न करे…

Option gives Choice = choose right of buying or selling the future contract. And also  choice of obligation

और जैसा मैंने कहा कि जिस तरह फ्यूचर का underlying asset स्टॉक, इंडेक्स , commodity या फिर करेंसी हो सकता है, ठीक उसी तरह आप्शन डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट  का underlying asset भी स्टॉक, इंडेक्स, commodity या फिर करेंसी हो सकता है.

और इसके बारे में डिटेल में आने वाले पोस्ट में जानेंगे….

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